नमस्कार दोस्तों! आज हम एक ऐसे सियासी धमाके का खुलासा करने जा रहे हैं जिसने दिल्ली की सत्ता गलियों में खलबली मचा दी है। उपराष्ट्रपति Jagdeep Dhankhar के अचानक इस्तीफे के पीछे की वो ‘अंदर की बात’ जो अब तक किसी को नहीं पता थी! क्या सरकार को वो चुनौती देने लगे थे? क्या शुरू हो गया था सीधा टकराव? इस पोस्ट को अंत तक ज़रूर बने रहे!
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Jagdeep Dhankhar का ‘सरकार के करीबी’ वाला रवैया बना जड़!
जब से जगदीप धनखड़ राज्यसभा के चेयरमैन बने, उन्होंने एक साफ़ संकेत दिया कि वे सरकार के बेहद करीबी हैं। उनके हर कदम से यही जाहिर हुआ कि वो सरकार के निर्देशों पर काम कर रहे हैं। यही नहीं, संसद परिसर में उनका झुका-झुका हावभाव इतना चर्चा में रहा कि विपक्ष ने उनकी मिमिक्री तक की। राहुल गांधी ने खुद उसका वीडियो बनाया और शेयर किया। इससे विरोधियों के बीच ये धारणा और पक्की हो गई कि धनखड़ साहब निष्पक्ष नहीं बल्कि सत्ता के इशारों पर काम करते हैं।
विपक्ष से भिड़ंत और बोलने पर ‘पाबंदी’ की शिकायत!
विपक्षी दलों के सांसदों का मानना था कि उपराष्ट्रपति लगातार उन्हें बोलने से रोकते हैं और अपमान करते हैं। बार-बार स्पीच रोकना, माइक बंद करना और तीखी टिप्पणी देना – ये सब विपक्षी नेताओं को खलने लगा। उन्हें लगने लगा कि संसद में अब निष्पक्षता की जगह नहीं बची है। इस टकराव की वजह से सरकार और विपक्ष के बीच दूरी बढ़ती गई और माहौल गर्माता चला गया। इसने सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया।
धनखड़ का सुप्रीम कोर्ट पर सीधा हमला!
सबसे बड़ा विवाद तब खड़ा हुआ जब उपराष्ट्रपति ने ज्यूडिशियरी पर सीधा हमला बोला। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों पर सवाल उठाए और बार-बार संसद की सुप्रीमेसी की बात दोहराई। इससे देश की सबसे बड़ी अदालत और सरकार के बीच तनाव की स्थिति बनने लगी। जजों को भी यह संदेश मिला कि यह हमला शायद सरकार के इशारे पर हो रहा है। यह बात सत्ता के गलियारों में ज़हर की तरह फैल गई और हालात और बिगड़ते गए।
सरकार से नाराज़गी और खुले आरोप!
धनखड़ साहब इस बात से नाराज़ होने लगे कि सरकार के नेता अब उनसे दूरी बना रहे हैं। उन्होंने मंत्रियों से लेकर RSS तक शिकायत करना शुरू कर दी कि उनकी बात कोई नहीं सुनता। मीडिया के सीनियर लोगों तक उन्होंने कहा कि उन्हें घुटन महसूस हो रही है। साथ ही ये धमकी भी दे दी कि अगर बात प्रधानमंत्री तक नहीं पहुंचाई गई तो उन्हें कोई कड़ा कदम उठाना पड़ेगा। ये सीधा सरकार को आंख दिखाने जैसा था।
विपक्ष से मेलजोल और सरकार को आखिरी झटका!
जैसे-जैसे तनाव बढ़ता गया, वैसे-वैसे धनखड़ साहब के तेवर और तीखे होते गए। उन्होंने कांग्रेस के नेताओं से मुलाकात की। *अरविंद केजरीवाल को समय दिया, बातचीत की। यहां तक कि यशवंत वर्मा के impeachment मामले में खुद की भूमिका तय करने लगे। ये सरकार के लिए *रेड अलर्ट था। अब उन्हें लगने लगा था कि राज्यसभा में धनखड़ साहब सरकार के लिए शर्मिंदगी का कारण बन सकते हैं।
इस्तीफा या इम्पीचमेंट आखिरी चेतावनी का असर
जब सरकार को ये लगा कि अब मामला हाथ से निकलने वाला है, तो एक सीधा फोन कॉल गया। साफ-साफ कहा गया कि अगर रवैया नहीं बदला गया, तो इम्पीचमेंट तक की नौबत आ सकती है। यह बात सुनते ही धनखड़ साहब को एहसास हुआ कि उन्होंने सत्ता का आंकलन गलत कर दिया। अब उनके पास कोई चारा नहीं बचा। आखिरकार उन्होंने इस्तीफा देना ही बेहतर समझा।
निष्कर्ष सत्ता के खेल में चूक, कुर्सी गई!
धनखड़ साहब ने सोचा था कि वो सरकार के भरोसेमंद सिपाही हैं, लेकिन जब वही सरकार उनसे किनारा करने लगी, तो मामला पूरी तरह पलट गया। उन्होंने बार-बार अपनी वफादारी जताई लेकिन जब खुले आम सरकार पर सवाल उठाने लगे तो उनके तेवर बर्दाश्त नहीं किए गए। सीधी बात – सत्ता के खेल में ओवरकॉन्फिडेंस भारी पड़ गया!
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